सावन में आने वाले मंगला गौरी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा खुशहाल वैवाहिक जीवन और सुख-समृद्धि की कामना के साथ किया जाता है। इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। आप इस दिन पर मां गौरी को 16 शृंगार की सामग्री जरूर अर्पित करें। ऐसा करने से साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
गौरी स्त्रोत
ॐ रक्ष-रक्ष जगन्माते देवि मङ्गल चण्डिके।
हारिके विपदार्राशे हर्षमंगल कारिके।।
हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल दायिके।
शुभेमंगल दक्षे च शुभेमंगल चंडिके।।
मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले।
सता मंगल दे देवि सर्वेषां मंगलालये।।
पूज्ये मंगलवारे च मंगलाभिष्ट देवते।
पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
मंगला धिस्ठात देवि मंगलाञ्च मंगले।
संसार मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।।
देव्याश्च मंगलंस्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः।
प्रति मंगलवारे च पूज्ये मंगल सुख-प्रदे।।
तन्मंगलं भवेतस्य न भवेन्तद्-मंगलम्।
वर्धते पुत्र-पौत्रश्च मंगलञ्च दिने-दिने।।
मामरक्ष रक्ष-रक्ष ॐ मंगल मंगले।
माना जाता है कि मंगला गौरी व्रत करने से माता गौरी के साथ-साथ साधक को भगवान शिव की भी कृपा मिलती है। विशेष रूप से यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता है। इसके साथ मंगला गौरी व्रत करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद भी मिलता है। वहीं अगर यह व्रत कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाए, तो उनके विवाह में आ रही बाधा दूर हो सकती है।
मंगला गौरी स्तुति
जय जय गिरिराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनी दुति गाता॥
देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथ जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबही के॥
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मुरति मुसुकानि॥
सादर सियं प्रसादु सर धरेऊ।
बोली गौरी हरषु हियं भरेऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सूचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥