वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस पर्व के आने का कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है और विवाह में आ रही बाधा दूर होती है।
सनातन धर्म में हरतालिका तीज के त्योहार का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मां पार्वती और महादेव की पूजा करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और कुंवारी लड़कियों के विवाह में आ रही बाधा दूर होती है और मनचाहा वर मिलता है।
क्या आप जानते हैं कि हरतालिका तीज व्रत क्यों किया जाता है। अगर नहीं पता, तो ऐसे में चलिए जानते हैं इसकी वजह के बारे में।
हरतालिका तीज डेट और शुभ मुहूर्त
भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत- 25 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर
भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का समापन- 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट पर
26 अगस्त को पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 56 मिनट से सुबह 08 बजकर 31 मिनट तक है। इस दौरान किसी भी भगवान शिव और मां पार्वती की उपासना कर सकते हैं।
इसलिए मनाई जाती है हरतालिका तीज
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर बेहद उत्साह के साथ हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है और पति-पत्नी के रिश्ते मजबूत होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरतालिका तीज के दिन महादेव ने प्रसन्न होकर देवी पार्वती को वर मांगने के लिए कहा, ऐसे में उन्होंने शिव जी से कहा कि आप मेरे पति हों, जिसके बाद शिव जी ने मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
इन बातों का रखें ध्यान
हरतालिका तीज के दिन किसी से वाद-विवाद न करें।
काले रंग के कपड़े भूलकर भी धारण न करें।
किसी के बारे में गलत न सोचें।
घर और मंदिर की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
तामसिक भोजन का सेवन न करें।
पूजा करने के बाद अन्न और धन समेत आदि चीजों का दान जरूर करना चाहिए। इससे धन लाभ के योग बनते हैं और हमेशा धन से तिजोरी भरी रहती है।
इन मंत्रों का करें जप
ओम पार्वत्यै नमः
ओम उमाये नमः
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
मां पार्वती को सिंदूर अर्पित करने का मंत्र –
सिंदूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिंदूरं प्रतिगृह्यताम्।।