ब्रज मंडल में कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही राधा अष्टमी का पर्व भी बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसे में अगर आप भी पहली बार राधा अष्टमी का व्रत करने जा रहे हैं तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें ताकि आपको व्रत का पूर्ण फल मिल सके। चलिए जानते हैं राधा अष्टमी व्रत के नियम।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पर राधा रानी की पूजा मध्याह्न काल में करने का विधान है। ऐसे में अगर आप राधा अष्टमी व्रत के दिन कुछ चीजों का ध्यान रखते हैं, तो इससे आपको राधा जी के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण की भी कृपा की प्राप्ति हो सकती है।
राधा अष्टमी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 30 अगस्त को रात 10 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 1 सितंबर को देर रात 12 बजकर 57 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में राधा अष्टमी रविवार 31 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन पर राधा जी की पूजा का समय सुबह 11 बजकर 5 मिनट से दोपहर 1 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
न करें ये गलतियां
राधा अष्टमी व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठें। इस दिन साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। इस दिन पर क्रोध, कटु वचन और बड़े-बुजुर्गों का अपमान न करें, अन्यथा आपको पूजा का पूरा फल नहीं मिलता। राधा अष्टमी के व्रत में अनाज और नमक का सेवन न करें। इस दिन पर केवल एक समय फलाहार करने का नियम है। साथ ही जो साधक इस दिन व्रत नहीं भी कर रहे हैं, उन्हें भी तामसिक भोजन से बचना चाहिए।
जरूर करें ये काम
राधा अष्टमी के दिन राधा रानी और कृष्ण के युगल स्वरूप की पूजा करें। साथ ही इस दिन पर राधा रानी की मूर्ति का शृंगार जरूर करें। इसके बाद राधा रानी और कृष्ण जी को मालपुए, मिठाई, रबड़ी और फलों का भोग लगाएं। भोग अर्पित करते समय इस मंत्र का जप भी जरूर करें –
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये। गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
माना जाता है कि भोग के दौरा इस मंत्र का जप करने से देवी-देवता भोग को जल्दी स्वीकार करते हैं। साथ ही राधा अष्टमी के दिन इन सभी नियमों का ध्यान रखने से साधक को प्रेम, सौभाग्य और आनंद की प्राप्ति होती है।