अयोध्या : गुरुपूर्णिमा! यह गुरु के प्रति अनुराग-आस्था का महापर्व है। रामनगरी इस परंपरा के केंद्र में है। गुरु की गौरव-गरिमा के पर्याय-प्रतीक ब्रह्मर्षि वशिष्ठ अयोध्या के प्रतापी सूर्यवंशीय नरेशों के कुलगुरु थे। भगवान राम के पूर्वज इक्ष्वाकु के समय से ही जिस पुण्यसलिला सरयू से अयोध्या सुशोभित है, वह गुरु वशिष्ठ के ही आध्यात्मिक तेज-तपस्या की परिचायक है। राजा इक्ष्वाकु के निवेदन पर गुरु वशिष्ठ ने विशेष अनुष्ठान किया और इसी के परिणामस्वरूप पुण्यसलिला हिमालय की उच्च उपत्यका में स्थित मानसरोवर से स्फुरित हो तीन सौ किलोमीटर पहाड़ी और इतना ही मैदानी रास्ता तय कर अयोध्या पहुंचीं। अकेले सरयू का अवतरण ही नहीं बल्कि अनेक निर्णायक मौकों पर गुरु वशिष्ठ की गरिमा में श्रीवृद्धि होती गई। युगों बाद भगवान राम के समय गुरु वशिष्ठ के आध्यात्मिक प्रताप का सूर्य दमक रहा था। गुरु के रूप में यदि वशिष्ठ ने शिष्य के रूप में भगवान राम ने अमिट छाप छोड़ी। अयोध्या में विकसित गुरु-शिष्य की इस जोड़ी की मिसाल दी जाती है।
समय के साथ रामनगरी भले ही वशिष्ठ जैसे दिव्य-दैवी गुरु से वंचित हुई पर गुरु परंपरा की गरिमा का प्रवाह बना रहा। पौराणिकता से इतर दो-तीन शताब्दियों के दौरान रामनगरी में एक से बढ़कर एक पहुंचे गुरु ने धूनी रमाई और हजारों-लाखों शिष्यों के माध्यम से आध्यात्मिकता की अलख जगाई। अयोध्या जिन आचार्यों की साधना-सिद्धि से अनुप्राणित हो अपनी विरासत के अनुरूप धर्म की राजधानी के तौर पर प्रतिष्ठापित है, उनमें बाबा रघुनाथदास, स्वामी रामप्रसादाचार्य, बाबा संगतबक्स, मणिरामदास, अभयरामदास, स्वामी युगलानन्यशरण, स्वामी सरयूशरण, बाबा गोपालदास, स्वामी रामवल्लभाशरण सरीखे संतों की विरासत है। इन आचार्यों ने जिन मंदिरों की स्थापना की थी, वे अपनी दर्शनीयता के लिए प्रसिद्ध हैं और जिस उपासना धारा को प्रवर्तित किया, उसमें हजारों-लाखों शिष्य डुबकी लगा रहे हैं।
 Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
