वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी का पर्व मनाया जाता है। इसे जानकी नवमी भी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का जन्म माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में माता सीता से संबंधित ऐसी अनेक रोचक बातें बताई गई हैं, जिन्हें आमजन नहीं जानते। आज सीता नवमी पर्व पर हम आपको वही बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है-
1. श्रीराम से विवाह के समय सीता की आयु 6 वर्ष थी, इसका प्रमाण वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में इस प्रसंग से मिलता है। इस प्रसंग में सीता, साधु रूप में आए रावण को अपना परिचय इस प्रकार देती हैं-
श्लोक
उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने।
भुंजना मानुषान् भोगान् सर्व कामसमृद्धिनी।1।
तत्र त्रयोदशे वर्षे राजामंत्रयत प्रभुः।
अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमंत्रिभिः।2।
परिगृह्य तु कैकेयी श्वसुरं सुकृतेन मे।
मम प्रव्राजनं भर्तुर्भरतस्याभिषेचनम्।3।
मम प्रव्राजनं भर्तुर्भरतस्याभिषेचनम्।3।
द्वावयाचत भर्तारं सत्यसंधं नृपोत्तमम्।
मम भर्ता महातेजा वयसा पंचविंशक:।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।।
अर्थ- सीता कहती हैं कि विवाह के बाद 12 वर्ष तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी मानवोचित भोग भोगे हैं। मैं वहां सदा मनोवांछित सुख-सुविधाओं से संपन्न रही हूं।
तेरहवे वर्ष के प्रारंभ में महाराज दशरथ ने राजमंत्रियों से मिलकर सलाह की और श्रीरामचंद्रजी का युवराज पद पर अभिषेक करने का निश्चय किया।
तब कैकेयी ने मेरे श्वसुर को शपथ दिलाकर वचनबद्ध कर लिया, फिर दो वर मांगे- मेरे पति (श्रीराम) के लिए वनवास और भरत के लिए राज्याभिषेक।
वनवास के लिए जाते समय मेरे पति की आयु 25 साल थी और मेरे जन्म काल से लेकर वनगमन काल तक मेरी अवस्था वर्ष गणना के अनुसार 18 साल की हो गई थी।
इस प्रसंग से पता चलता है कि विवाह के बाद सीता 12 वर्ष तक अयोध्या में ही रहीं और जब वे वनवास पर जा रहीं थीं, तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। इससे स्पष्ट होता है कि विवाह के समय सीता की आयु 6 वर्ष रही होगी। साथ ही यह भी ज्ञात होता है कि श्रीराम और सीता की उम्र में 7 वर्ष का अंतर था।