पुत्रदा एकादशी व्रत कल, जानें इसकी कहानी और कैसे करें पूजन

हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी का व्रत किया जाता है। जिसे बहुत ही पुण्यदायी और लाभकारी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और वयक्ति पापों से मुक्त हो जाता है। इस बार 17 जनवरी की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाएगा। नि:संतान दंपत्ति के लिए यह व्रत काफी लाभदायक बताया गया है।

एकादशी का व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि यह व्रत एक दिन के लिए नहीं बल्कि दो दिन यानी 48 घंटों के लिए रखा जाता है। एकादशी व्रत के नियमानुसार, व्रत के एक दिन पहले व्रती केवल एक समय ही भोजन करते हैं और एकादशी के दिन कठोर उपवास करते हैं। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।

पुत्रदा एकादशी की कहानी

एक समय भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों चिंता और शोक में रहते थे कि उनके मरने के बाद उन्हें अग्नि कौन देगा। इसी शोक में एक दिन राजा राजा सुकेतुमान वन में चले गए। प्यास लगने पर वे एक सरोवर के निकट पहुंचे, जहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने उन सभी मुनियों को वंदना की।

प्रसन्न होकर मुनियों ने राजा से वरदान मांगने को कहा। राजन ने अपने निःसंतान होने की बात कहते हुए संतान प्राप्ति के लिए उपाय बताने को कहा। मुनि बोले कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकदाशी होती है, उस दिन व्रत रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। तुम भी वही व्रत करो। ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। कुछ ही दिनों बाद रानी चम्पा ने गर्भधारण किया। उचित समय आने पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट किया तथा न्यायपूर्वक शासन किया।

ऐसे करें यह व्रत

पुत्रदा एकादशी की सुबह स्नान आदि के बाद शंख में जल लेकर भगवान विष्णु की प्रतिमा का अभिषेक करें। इसके बाद भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि से पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाकर पीले वस्त्र अर्पित करें। मौसमी फलों के साथ आंवला, लौंग, नींबू, सुपारी भी चढ़ाएं। इसके बाद गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।

दिन भर कुछ खाएं नहीं। संभव न हो तो एक समय भोजन कर सकते हैं। रात को प्रतिमा के पास जागरण करें और भजन गाएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद ही उपवास खोलें। इस तरह व्रत और पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।

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