आप सभी को बता दें कि हिन्दू पंचांग के प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है और इस महीने यानी सावन के महीने में कालाष्टमी 24 जुलाई को है. ऐसे में इस दिन भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा की जाती है तथा व्रत रखा जाता है. वहीं कहा जाता है मार्गशीर्ष माह की कालाष्टमी को सर्वप्रमुख कालाष्टमी मानते हैं और इसी अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है. इसी के साथ ऐसी भी मान्यता है, कि इसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे और कालभैरव जयन्ती को भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है.
श्री कालाष्टमी व्रत कथा- भैरवाष्टमी अथवा कालाष्टमी की कथा के अनुसार, एक समय श्रीहरि विष्णु व ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ, कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है. यह विवाद इस स्तर तक बढ़ गया, कि समाधान हेतु भगवान शिव एक सभा का आयोजन करना पड़ा. इसमें ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे. सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं होते. वे महादेव का अपमान करने लगते हैं.
शांतचित्त शिव यह अपमान सहन न कर सके व ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया. भगवान शंकर प्रलय रूपी होने लगे व उनका रौद्र रूप देख कर तीनों लोक भयभीत हो गए. भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए. वह श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था. हाथ में दंड होने के कारण वे “दंडाधिपति” कहे गए. भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था. उन्होंने ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया, तब ब्रह्म देव को उनके गलती का स्मरण हुआ. तत्पश्चात ब्रह्म देव व विष्णु देव के मध्य विवाद समाप्त हुआ व उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया, जिससे उनका अभिमान व अहंकार नष्ट हो गया.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।