दिव्यवंशी पाण्डवों में स्वविवेक है, विचारशीलता है, सत्य विद्यमान है और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। स्वविवेक से ही धर्ममम का विस्तार होता है, इसकी गूढता सरलता में परिवर्तित होती है, इसके मर्म का ज्ञान होता है। बृहस्पति स्मृति में कहा गया है – केवलं शास्त्रमाश्रित्य न कर्तव्यो विनिर्णयः !युक्तिहीनविचारे तु धर्महानिः प्रजायते !!अर्थात् “केवल शास्त्र का आश्रय …
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