जब एक प्रेत और हनुमान जी की मदद से तुलसीदास ने किये भगवान श्रीराम के दर्शन

आप सभी को बता दें कि रामचरितमानस के रचयिता संत तुलसीदास की आज जयंती है और इसे हर साल सावन महीने से शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है. आप सभी को बता दें कि 16वीं शताब्दी में जन्में तुलसीदास के बारे में ऐसी मान्यता है कि कलयुग में उन्हें भगवान हनुमान सहित श्रीराम और लक्ष्मण ने दर्शन दिये थे. वहीं कहा जाता है कई लोग तुलसीदास को महर्षि वाल्मिकी के पुनर्जन्म के रूप में देखते हैं और कहा जाता है कि भगवान राम के प्रति अत्यंत भक्ति के कारण ही तुलसीदास को भगवान राम का दर्शन करने का मौका मिला.

कहा जाता है तुलसीदास भगवान राम की कथा लोगों को सुनाते थे और कहते हैं कि इस दौरान एक बार राम कथा सुनाते समय इनकी मुलाकात एक प्रेत से हुई. जी हाँ, वहीं प्रेत ने तुलसीदास को हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया और तुलसीदास को जब हनुमान के दर्शन हुए तो उन्होंने उनसे राम से मिलने की जिद की. कहते हैं हनुमान जी ने पहले तो इसे टालने की कोशिश की लेकिन जब तुलसीदास नहीं माने तो भगवान ने कहा कि श्रीराम के दर्शन उन्हें चित्रकूट में होंगे. वहीं तुलसीदास ने इसके बाद चित्रकूट के रामघाट में डेरा जमाया और एक दिन तुलसीदास को दो बहुत सुंदर युवक घोड़े पर सवार नजर आये. वहीं तुलसीदास जी ने जब इन्हें देखा तो वे सुध-बुध खो बैठे लेकिन वे पहचान नहीं सके ये राम और लक्ष्मण हैं.

इनके चले जाने के बाद हनुमान जी ने जब असली बात बताई तो तुलसीदास पछताने लगे. कहते हैं तुलसीदास को दुखी देख हनुमानजी ने कहा कि कल सुबह आपको फिर राम दर्शन देंगे और अगले दिन तुलसीदास जब घाट पर रामकथा सुनाने के बाद लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी एक सुंदर बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आये और कहा- ‘बाबा हमें चंदन नहीं लगाओगे.’ वहीं उस समय हनुमान जी को लगा कि कही ऐसा न हो कि तुलसीदास फिर भगवान को पहचान नहीं सके और ऐसे में हनुमान जी ने एक तोते का रूप धारण किया और गाने लगे- ‘चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर. तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥’ बस इसी दौरान भगवान राम ने खुद तुलसीदास का हाथ पकड़कर तिलक लगा लिया और उनके माथे पर भी तिलक लगाकर अन्तर्धान हो गए.

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