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कर संक्रांति पुण्य और पवित्रता का दिन है। महाभारत में भी इस दिन का उल्लेख किया गया है क्योंकि पितामह भीष्म ने मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागे थे और उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। इससे पहले वे उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहे और बाणों की शैया पर कष्ट सहन करते रहे। मान्यता है कि दक्षिणायन में प्राण त्याग करने से उस मनुष्य की मुक्ति नहीं होती। दक्षिणायन अंधकार की अवधि मानी जाती है। देहत्याग के लिए यह उत्तम नहीं होती। वहीं, सूर्यदेव का उत्तरायण होना शुभ माना जाता है। यह प्रकाश की अवधि होती है। अत: पितामह भीष्म ने प्राणत्याग के लिए यही समय सबसे उपयुक्त माना। आगे पढि़ए, भीष्म ने मृत्यु से पूर्व युधिष्ठिर को किन बातों का उपदेश दिया था।
भीष्म ने कहा था कि जिस घर में स्त्री प्रसन्न हो वहीं समस्त सुखों और लक्ष्मी का वास होता है। जहां स्त्री दुखी हो, उसका अपमान किया जाता है, वहां सुख-समृद्धि का वास नहीं होता, क्योंकि लक्ष्मी और समस्त देवी-देवता उस घर का त्याग कर देते हैं। इसलिए सुखी घर के लिए स्त्री का प्रसन्न होना जरूरी है।
जो परिवार अपनी बेटी और स्त्री को दुख देता है, बदले में उसे भी दुखों की प्राप्ति होती है। वह स्वयं दुखों से अपनी सुरक्षा नहीं कर सकता। ऐसे दुख कालांतर में शोक में परिवर्तित हो जाते हैं। अत: दुखों के निवारण और सुखों की प्राप्ति के लिए बेटी और स्त्री का सम्मान होना आवश्यक है।
किसी भी मनुष्य को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो उसे बदले में शाप दिलाए क्योंकि शाप का परिणाम दुखद होता है। अतीत में कई शक्तिशाली लोगों ने अपने बल का दुरुपयोग किया और उसके बदले मिले शाप ने उन्हें अपयश दिलाया। महाभारत में कई पात्र सिर्फ इस कारण कलंक के भागी हुए क्योंकि उन्होंने शाप लिया था। अत: मनुष्य को बुरे कार्यों से सदैव दूर रहना चाहिए।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।