ये हैं भारत के पांच खास मंदिर, जिनके राज़ आज भी कोई नहीं जानता

mysterious-temples-of-india_650x400_81446643081धर्म, भक्ति, अध्यात्म और साधना का देश है भारत, जहां प्राचीन काल से पूजा-स्थल के रूप में मंदिर विशेष महत्व रखते रहे हैं। यहां कई मंदिर ऐसे हैं, जहां विस्मयकारी चमत्कार भी होते बताए जाते हैं। जहां आस्थावानों के लिए वे चमत्कार दैवी कृपा हैं, तो अन्य के लिए कौतूहल और आश्चर्य का विषय। आइए जानते हैं, भारत के कुछ विशिष्ट मंदिरों के बारे में, जिनके रहस्य असीम वैज्ञानिक प्रगति के बाद कोई नहीं जान पाया है।

कामाख्या मंदिर

पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में गुवाहाटी के पास स्थित कामाख्या देवी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध है। लेकिन इस अति प्राचीन मंदिर में देवी सती या मां दुर्गा की एक भी मूर्ति नहीं है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी, जो समय के साथ महान शक्ति-साधना का केंद्र बनी। कहते हैं यहां हर किसी कामना सिद्ध होती है। यही कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है।

यह मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसका पहला हिस्सा सबसे बड़ा है, जहां पर हर शख्स को जाने नहीं दिया जाता है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर समय पानी निकलता है। कहते हैं कि महीने में एकबार इस पत्थर से खून की धारा निकलती है। ऐसा क्यों और कैसे होता है, यह आजतक किसी को ज्ञात नहीं है?

करणी माता मंदिर

इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है, लेकिन कुछ सफेद भी है, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे सफेद चूहा दिख जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

आश्चर्यजनक यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर नहीं चल सकते, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है, लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।

ज्वालामुखी मंदिर

ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के मध्य स्थित है। यह भी भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर पर माता सती की जीभ गिरी थी। माता सती की जीभ के प्रतीक के रुप में यहां धरती के गर्भ से लपलपाती ज्वालाएं निकलती हैं, जो नौ रंग की होती हैं। इन नौ रंगों की ज्वालाओं को देवी शक्ति का नौ रुप माना जाता है। ये देवियां है: महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी।

किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेगी? कहते हैं, कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन वे विफल रहे।

काल भैरव मंदिर

मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भगवान काल भैरव का एक प्राचीन मंदिर। परंपरा के अनुसार, श्रद्धालु उन्हें प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाते हैं। आश्चर्यजनक यह है कि जब शराब का प्याला काल भैरव की प्रतिमा के मुख से लगाया जाता है, तो वह एक पल में खाली हो जाता है।

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर का बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पल भर पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।

ऐसा कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर में रात में रुकना मना है।

 

यहां है भटके हुए देवता का मंदिर, भक्त करते हैं अंत:करण में झांकने का अभ्यास
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