बजरंग बली और विभीषण के बीच था ये एक खास रिश्ता

संकट मोचन हनुमान अपने भक्तों के सारे संकट दूर करने वाले माने जाते है। जो भी भक्त किसी भी प्रकार के संकट से परेशान रहता है, तो भगवान बजरंगबलि निश्चित ही उसकी सहायता करते हैं। आज हम भगवान बजरंगबलि के समय की कुछ ऐसी घटना के बारे में आपसे चर्चा करने वाले है। जिसके बारे में अब तक बहुत कम ही लोग परिचित हैं। दरअसल भगवान हनुमान उन सभी लोगो को अपना प्रिय मानते थे, जो किसी न किसी रूप से भगवान राम से जुड़े थे। इसलिए जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को नहीं जलाया था, क्योंकि वहां सीताजी रहती थीं। इसी तरह उन्होंने रावण के भाई विभीषण का भवन भी नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था।

साथ ही भगवान विष्णु के चिन्ह व शंख, चक्र और गदा भी बने हुए थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी, कि विभीषण के घर के ऊपर राम नाम अंकित था। उसी क्षण से विभीषण, हनुमान जी के प्रिय हो गए थे। यही कारण है कि जब विभीषण श्री राम की शरण में आये और सुग्रीव ने उनके प्रति आशंका प्रकट करते हुए दंड देने का सुझाव दिया, तो हनुमानजी ने उन्हें शिष्ट मान कर शरण में लेने का अनुरोध किया था और प्रभु राम ने उसे स्वीकार कर लिया था। 

हनुमान स्तुआति की रचना

हनुमान जी ने कहा था कि जो एक बार विनीत भाव से उनकी शरण की याचना करता है और अपने आप को उन्हें  समर्पित कर देता है, तो वे उसे अभयदान प्रदान कर देते हैं। यह उनका व्रत है, इसलिए विभीषण को शरण देना उनके लिए अनिवार्य है। ऐसा भी कहा गया है कि इंद्र आदि देवताओं के बाद धरती पर सबसे पहले विभीषण ने ही हनुमानजी की स्तुति की थी। साथ ही विभीषण को भी हनुमानजी की तरह अमरत्वद का वरदान प्राप्तस है और वे आज भी जीवित माने जाते है। वीभीषण ने हनुमानजी की स्तुति के लिए अत्यंत कल्याहणकारी स्तोत्र की रचना की है जिसे हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं।

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