हरिशयनी एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है: धर्म

हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण तिथि होती है। इस तिथि के दिन देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है।

इसे आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रानुसार श्री नारायण ने एकादशी का महत्त्व बताते हुए कहा है कि देवताओं में श्री कृष्ण, देवियों में प्रकृति, वर्णों में ब्राह्मण तथा वैष्णवों में भगवान शिव श्रेष्ठ हैं। उसी प्रकार व्रतों में एकादशी व्रत श्रेष्ठ है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी का मुहूर्त क्या है।

Devshayani Ekadashi 2020 Date: इस साल आषाढ़ शुक्ल की एकादशी तिथि 1 जुलाई 2020 को पड़ रही है। इसलिए देवशयनी एकादशी का व्रत 1 जुलाई को रखा जाएगा।

देवशयनी एकादशी का मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 30 जून, शाम 07:49 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 1 जुलाई, शाम 5:30 बजे

सुबह जल्दी उठें। शौचादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को गंगा जल से नहलाएं।
अब दीपक जलाकर उनका स्मरण करें और भगवान विष्णु की पूजा में उनकी स्तुति करें।
पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें तथा पूजा के अंत में विष्णु आरती करें।
शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें।
लोगों में प्रसाद बांटें और ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें।

पौराणिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। महाभारत के समय भगवान श्रीकृष्ण ने खुद एकादशी व्रत का महत्व बताया था। जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। व्रत के दौरान भगवान विष्णु और पीपल के वृक्ष की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।

एक जुलाई से चतुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे। अर्थात भगवान विष्णु चार माह तक पाताल लोक में निवास करेंगे। इस बीच कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जा जाते हैं।

मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु जी के शयन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती हैं। चार माह बाद सूर्य देव जब तुला राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन भगवान विष्णु का शयन समाप्त होता है। इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन से फिर सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं।

चातुर्मास में भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं जिससे शुभ और मांगलिक कार्य नहीं होते
हर मंगलवार और शनिवार को बजरंग बाण का पाठ करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं

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