राखी का पर्व बहुत ही ख़ास माना जाता है. इस पर्व को भाई-बहनों के लिए ख़ास माना जाता है. यह पर्व भाई-बहन बहुत ही उल्लास के साथ मनाते हैं. वहीं इस पर्व के पीछे एक कथा है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं.
पौराणिक कथा- एक बार देव व दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे. भगवान इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति के पास गए और अपनी व्यथा सुनाने लगे. इंद्र की पत्नी इंद्राणी यह सब सुन रही थी. उन्होने एक रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई पर बांध दिया. वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था. प्रसन्नता और विजय इंद्र को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई. तभी से विश्वास है कि इंद्र को विजय इस रेशमी धागा पहनने से मिली थी.
उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है. कहा जाता है यह धागा ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रसन्नता और विजय देने में पूरी तरह सक्षम माना जाता है. आप सभी को बता दें कि विधि-विधान से पूर्णिमा के दिन प्रातः काल हनुमान जी व पित्तरों को स्मरण करना चाहिए. उसके बाद चरण स्पर्श कर जल, रोली, मौली, धूप, फूल, चावल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा आदि चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए. कहा जाता है उसके बाद भोजन के पहले घर के सब पुरुष व स्त्रियां राखी बाँधना चाहिए. वहीं बहनें अपने भाई को राखी बांधकर तिलक करें व गोला नारियल दें. इसके बाद भाई बहन को प्रसन्न करने के लिए रुपये अथवा यथाशक्ति उपहार दें सकता है. ध्यान रहे राखी में रक्षा सूत्र अवश्य बांधें.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।