21 प्रकार के होते हैं ऋषि, व्यतीत करते हैं ऐसा जीवन, जानें इनके नाम…..

ऋषियों के बारे में आपने सदा सुना होगा. भारत में एक दिन पूर्णतः ऋषियों को समर्पित होता है. भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी ऋषि पंचमी के रूप में मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत रखती है और इस दिन सप्तऋषियों के पूजन का विधान है. हालांकि क्या आपने कभी सोचा है कि ऋषि कितने प्रकार के होते हैं और इनकी पहचान क्या होती है. तो आइए आज जानते हैं कुल 21 ऋषियों के बारे में…

1 वैखानस-
ऋषियों के इस समूह की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के नाखून से हुई है.

2 वालखिल्य- 
इस समूह की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के रोम से हुई थी.

3 संप्रक्षाल- 
इन ऋषियों की विशेषता है कि भोजन के बाद ये बर्तन धो-पोछकर रख देते है और दूसरे समय के लिए ये भोजन नहीं बचाते हैं.

4 मरीचिप- 
ये सूर्य और चन्द्र की किरणों का पान करते हैं.

5 बहुसंख्यक अश्म्कुट- 
इनकी पहचान है कि कच्चे अन्न को पत्थर से कूटकर खाते हैं.

6 पत्राहार-
महज पत्तों का ही सेवन करते हैं.

7 दंतोलूखली- 
अपने दांतों की मदद से ही ऊखल करते हैं.

8 उन्मज्ज्क- 
इनकी विशेषता है कि गले तक के जल में डूब कर ये तपस्या करते हैं.

9 गात्रशय्य- 
इनकी विशेष बात है कि ये अपने शरीर को ही शय्या बना लेते हैं, अपनी भुजाओं पर सिर रख कर विश्राम करते हैं.

10 अश्य्य- 
विश्राम करते हैं तो सीधे जमीन पर करते हैं. सोने के लिए कोई साधन नहीं.

11 अनवकाशिक- 
लगातार ये ऋषि सत्कर्म करते रहते हैं और ये कभी भी इस काम से दूर नहीं रहते हैं.

12 सलिलाहार- 
महज जल का सेवन करते हैं.

13 वायुभक्ष- 
ऐसा कहते हैं कि ये ऋषि महज हवा का सेवन करते हैं.

14 आकाश निलय- 
खुली जगह इनका निवास स्थान होता है, जबकि बारिश के दौरान वृक्षों के नीचे चले जाते हैं.

15 स्थनिडन्लाशाय- 
ये वेदी पर विश्राम करते हैं.

16 उर्ध्व्वासी- 
पर्वत,शिखर या कोई ऊंचा स्थान इनका अनिवास होता हैं.

17 दांत- 
मन और सभी इन्द्रियों को वश में करके रखते हैं.

18 आद्रपटवासा- 
इस समूह के ऋषि सदा भीगे वस्त्र धारण करते हैं.

19 सजप- 
इनकी विशेषता है कि ये निरंतर जप करते रहते हैं.

20 तपोनिष्ठ- 
ऋषियों का यह समूह सदा तपस्या या ईश्वर के विचारों में लीन रहता है.

21 प्रशिक्षक- 
21वें ऋषि के रूप में प्रशिक्षक समूह को जाना जाता है. ये आश्रम बनाकर रहते हैं और आश्रम में ही लोगों को प्रशिक्षित करते हैं.

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