साल की 24 एकादशी में से निर्जला एकादशी का अधिक महत्व माना जाता है। साथ ही धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि इस एकादशी का व्रत करने से साधक को 24 एकादशी का व्रत करने जितना ही फल मिलता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि निर्जला एकादशी कब और क्यों मनाई जाती है।
एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। हर महीने में 2 बार एकादशी का व्रत किया जाता है। एकादशी व्रत करने से साधक को जीवन में सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, जिसके पीछे एक पौराणिक प्रसंग मिलता है। चलिए जानते हैं उसके बारे में।
कब है निर्जला एकादशी
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून को देर रात 02 बजकर 15 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 7 जून को प्रातः 4 बजकर 47 मिनट पर होगा। ऐसे में निर्जला एकादशी का व्रत शुक्रवार 6 जून को किया जाएगा। वहीं वैष्णव निर्जला एकादशी शनिवार, जून 7 को मनाई जाएगी।
स्वयं वेदव्यास ने समझाया महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार वेदव्यास पांडवों को एकादशी व्रत का संकल्प करवा रहे थे, तभी भीम ने वेदव्यास जी से निवेदन किया कि हे पितामह! आपने प्रति पक्ष की एकादशी पर उपवास की बात कही है। मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शात रखने के लिए मुझे भोजन करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में मैं भोजन के बगैर नहीं रह सकता। इस प्रकार तो मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाउंगा।
भीमसेन को दिया ये सुझाव
तब वेदव्यास जी भीम से कहते हैं कि यदि तुम्हारे लिए प्रत्येक एकादशी का व्रत रखना संभव नहीं है, तो तुम केवल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की एक व्रत करो। इस व्रत को करने से तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशी व्रत को करने का फल मिलेगा।
साथ ही तुम इस लोक में सुख और यश को भोगकर मृत्यु के पश्चात मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। भीमसेन निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए सहमत हो गए। इसी कारण से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।