“श्रावण मास” वह दिव्य कालखंड जब संपूर्ण सृष्टि शिवमय हो जाती है। वर्षा की हर बूंद मानो गंगाजल बनकर शिवलिंग पर अर्पित होती है और चारों दिशाओं में “ॐ नमः शिवाय” की गूंज होती है।
यह महीना केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, आत्मसमर्पण और शिवभक्ति की एक गहन अनुभूति है। इस मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने का अत्यंत प्रभावशाली और शुभ माना जाता है। ऐसे में आइए इस लेख में जानते हैं रुद्राभिषेक के श्रेष्ठ दिन, महत्व और विधि आदि जानकारी।
सावन 2025 में रुद्राभिषेक के श्रेष्ठ दिन
14 जुलाई 2025- पहला सावन सोमवार
21 जुलाई 2025- दूसरा सावन सोमवार
28 जुलाई 2025- तीसरा सावन सोमवार
4 अगस्त 2025- चौथा सावन सोमवार
सावन मास में रुद्राभिषेक का महत्व
“रुद्राभिषेक” का अर्थ है भगवान शिव के रौद्र रूप का विधिपूर्वक अभिषेक करना, जिसमें जल, दूध, शहद, घी, गंगाजल से पंचामृत बनाकर शिवलिंग को स्नान कराया जाता है। यह केवल एक पूजा विधि नहीं, बल्कि शिव से जुड़ने की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
शिवपुराण में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि-
“श्रावण मासे विशेषेण यः कुर्याद्रुद्रपूजनम्। सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोके महीयते॥”
अर्थ- जो भक्त सावन मास में विशेष रूप से रुद्राभिषेक करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक में वास करता है।
सोमवार जो कि चंद्रदेव का दिन है और चंद्रमा स्वयं भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए यह दिन शिव उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। सावन के सोमवार इसलिए प्रभावशाली होते हैं क्योंकि इस ऋतु में सूर्य का प्रभाव कम और चंद्र का प्रभाव अधिक होता है।
चंद्रमा मन के स्वामी हैं, और यही समय मानसिक शुद्धि, भावनात्मक संतुलन और आत्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन श्रद्धापूर्वक किया गया रुद्राभिषेक मन के विकारों को शांत करता है, भक्ति भाव को जाग्रत करता है और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
ग्रह दोषों में विशेषकर चंद्र, राहु, केतु और शनि से संबंधित पीड़ाओं की शांति के लिए सावन सोमवार को किया गया रुद्राभिषेक अत्यंत लाभकारी होता है।
कालसर्प योग, जो अनिश्चितता, भय और जीवन में अवरोध का कारण बनता है उसके निवारण के लिए भी सावन में महामृत्युंजय जाप सहित रुद्राभिषेक श्रेष्ठ उपाय बताया गया है।
आयुर्वेदिक दृष्टि से भी, पंचामृत से अभिषेक और उसके दर्शन से मानसिक संतुलन, भावनात्मक शांति और सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है।
रुद्राभिषेक की विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत मन से पूजा स्थल की शुद्धि करें।
शिवलिंग को उत्तर दिशा की ओर रखें, स्वयं पूर्वमुखी होकर बैठें।
पूजा में भगवान गणेश, नंदी और कलश की स्थापना करें। कलश में गंगाजल भरें और उस पर स्वास्तिक एवं मंगल चिह्न अंकित करें।
कलश में सुपारी, नारियल, पंचरत्न, सिक्के, अक्षत, चंदन, रोली और मौली रखें।
शिवलिंग को सर्वप्रथम गंगाजल से स्नान कराएं, फिर दूध, दही, घी, शहद से अभिषेक करें।
इसके बाद पंचामृत, चंदन, बेलपत्र, शमी पत्र, आंकड़ा, धतूरा, कमल पुष्प, तिल, चावल आदि अर्पित करें।
सामग्री अर्पण करते समय “ॐ नमः शिवाय” या “महामृत्युंजय मंत्र” का उच्चारण करें।
अंत में भगवान शिव की आरती करें और हृदय से प्रार्थना करें।
रुद्राभिषेक के दौरान क्या-क्या अर्पित करें-
श्रावण मास के रुद्राभिषेक में इस वस्तुओं को अर्पण करना विशेष फलदायी माना जाता है।
गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद (पंचामृत)
बेलपत्र, शमी पत्र, धतूरा, आंक के फूल
इत्र, चंदन, फल, फूल, पान, सुपारी
अक्षत (चावल), धूप, दीप, कपूर, काला तिल
इन सभी पूजन सामग्रियों को श्रद्धा और शुद्ध भाव से अर्पित करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्त को आशीर्वाद स्वरूप सुख, शांति, आरोग्यता और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।
समापन
सावन मास में श्रद्धा से किया गया रुद्राभिषेक जीवन के कष्टों को हरता है और शिव कृपा को आकर्षित करता है। इस पावन समय में बस एक सच्चे मन से शिवलिंग का अभिषेक करें और अनुभव करें शांति, शक्ति और शिव का सान्निध्य।
ॐ नमः शिवाय।