भगवान दत्तात्रेय में ‘त्रिदेव’ यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का साक्षात् रूप मिलता है। इनमें त्रिदेव की शक्तियां समाहित हैं। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि के पुत्र हैं। उनकी माता का नाम अनुसूइया था।
हमारे पौराणिक ग्रंथों में ऋषि अत्रि और अनुसूइया के तीन पुत्रों का उल्लेख मिलता है। जिनमें पहले ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, शिवजी के अंश से ऋषि दुर्वासा और त्रिदेव के अंश से दत्तात्रेय जी का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय जी के 24 गुरु थे। जिनमें पक्षी, थलचर और जलचर जीव, मनुष्य और प्रकृति शामिल हैं। जिनसे उन्होंने कुछ न कुछ सीखा है। इसीलिए वर्तमान में हम भी इन 24 गुरुओं से कुछ न कुछ सीख सकते हैं। जिनकी सीख हमें बेहतर बना सकती है।
पक्षियों से…
1. कबूतर: जब कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को बचाता है तो वह खुद भी वहीं फंस जाता है। यानी किसी से बहुत ज्यादा स्नेह अमूमन दु:ख का कारण होता है।
2. मधुमक्खी: मधुमक्खियां फूलों के रस से शहद बनाती हैं और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। यानी आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।
3. कुररी पक्षी: कुररी पक्षी (ये पक्षी पानी के निकट रहने वाले स्लेटी रंग के पक्षी हैं। कुररी के पैर छोटे और जालपाद युक्त होते हैं, चोंच बड़ी और पैनी व डैने नुकीले होते हैं।) से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुररी पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे नहीं खाता है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुररी से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुररी को शांति मिलती है।
4. भृंगी कीड़ा: कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।
5. पतंगा: पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में नहीं उलझना चाहिए।
6. भौंरा: भौरें से भगवान दत्तात्रेय ने सीख कि, ‘जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेता है।’
जलचर और थलचर जीवों से…
7. रेशम कीट: जिस प्रकार रेशम कीट ककून में बंद हो जाने पर दुसरे रूप का चिंतन कर वह रूप पा लेती है, हम भी अपना मन किसी अन्य रूप से एकाग्र कर वह स्वरूप पा सकते है।
8. मकड़ी: मकड़ी जाल बुनती है। भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।
9. हाथी: हाथी-हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। हाथी से सीखा जा सकता है कि सन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से दूर रहना चाहिए।
10. हिरण: हिरण उछल-कूद, संगीत, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिसंक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। हिरण के तरह ही जिंदगी की बेखौफ तरीके से जीनी चाहिए।
11. मछली: हमें स्वाद का लालच नहीं होना चाहिए। मछली जब किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए जाती है तो वह उसमें फंस जाती है। यानी स्वाद को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए।
12. सांप: सांप से सीख मिलती है कि, ‘किसी भी सन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।’
13. अजगर: हमें जीवन में अजगर की तरह संतोषी रहना चाहिए। यानी जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए।
मनुष्य से…
14. बालक: छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।
15. पिंगला वेश्या: पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई।
15. कुमारी कन्या: कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक बार दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या को देखा जो जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूडियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे हुए थे, जिन्हें चूडिय़ों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तभी उस कन्या ने चूडियां ही तोड़ दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अत: हमें ही एक चूड़ी की भांति अकेले जिंदगी जीने का साहस रखना चाहिए।
16. तीर बनाने वाला: अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।
प्रकृति से…
17. आकाश: दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।
18. जल: हमें जल की तरह पवित्र रहना चाहिए।
19. सूर्य: जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।
20. वायु: अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोडऩा नहीं चाहिए।
21. समुद्र: समुद्र की तरह ही जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
22. आग: आग कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। जिस प्रकार आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है।
23. चन्द्रमा: आत्मा लाभ-हानि से परे है। बिल्कुल वैसे ही जैसे घटने-बढऩे से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है।
24. पृथ्वी: पृथ्वी सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।