होली का पर्व रंग, गुलाल और मस्तीभरे अंदाज वाला होता है। विभिन्न रंगों की छटा से माहौल सराबोर रहता है और देश के ज्यादातर हिस्सों में लोग इसके रंग में रंगे हुए होते हैं। होली के त्यौहार का पौराणिक महत्व है और इसका संबंध देवी-देवताओं से है। इसलिए होली के दिन देवताओं को रंग लगाने के बाद होली के पर्व का प्रारंभ किया जाता है। होली के त्यौहार से तीन देवताओं की कथा जुड़ी हुई है। इसलिए होली का पर्व इन तीन देवताओं को समर्पित किया जाता है।
भगवान विष्णु की कथा
वैदिक शास्त्रों के अनुसार भक्त प्रह्लाद के पिता हिरणयकश्यप ने प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठाकर जलाने का प्रयास किया था, लेकिन अग्नि से न जलने का वर प्राप्त करने वाली होलिका जल गई थी और श्रीहरी की कृपा से प्रह्लाद बच गया था। इसके बाद ब्रहमा से वर प्राप्त हिरणय्कश्यप को भगवान विष्णु ने नृसिह अवतार लेकर खंभें से प्रगट होकर मारा था। इसलिए मूल रूप से होली की कथा भक्त प्रहलाद और भगवान विष्णु से संबंधित है।
भगवान महादेव की कथा
कैलाशपति महादेव हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। स्वर्ग के देवताओं के आदेश से कामदेव ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की साधना को भंग करने का प्रयास किया था और उनके अंदर काम वासना को जागृति करने की कोशिश की थी। महादेव को जब कामदेव के इरादों का पता चला तो उन्होंने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। मान्यता है कि होलिका के जलने का प्रसंग इसी घटना के बाद हुआ था। इसके बाद शिवजी ने कामदेव को क्षमा कर दिया था और देवी पार्वती से विवाह कर लिया था।
भगवान श्रीकृष्ण की कथा
शास्त्रोक्त मान्यता है कि कामदेव को भस्म करने के बाद जब महादेव का क्रोध शांत हुआ तो देवी पार्वती और कामदेव की पत्नी रति ने महादेव से कामदेव को नया जीवन देने की प्रार्थना की। शिवजी को जब हकीकत पता चला तो उन्होंने देवी पार्वती और रति की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और कामदेव और रति को श्रीकृष्ण और राधा के रूप में पुनर्जन्म दिया । मान्यता है कि तभी से भगवान कृष्ण और राधा मिलकर होली खेलते है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।
