महिला दिवस पर जानें उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने पौराणिक काल में रचा था इतिहास

 नारी त्रैलोक्य जननी,नारी त्रैलोक्य रूपिणी।

नारी त्रिभुवन धारा,नारी देह स्वरुपिणी।।

सनातन संस्कृति में महिलाओं को बड़ा सम्मान दिया गया है। उनको देवीतुल्य मानते हुए यथोचित सम्मान दिया गया है। महिलाओं के त्याग, शौर्य, स्नेह, ममता और उनके ज्ञान के किस्सों से वेद-पुराण भरे हुए हैं। सीता, द्रौपदी, कुंती, गांधारी, अहिल्या आदि नारियों के त्याग, तपस्या और उनकी बुद्धिमता का विस्तार से वर्णन हमारे महाकाव्यों में किया गया है। पौराणिक काल की महिलाओं ने अपनी बुद्धिमानी और चतुराई से कई समस्याओं का समाधान किया है और देश-दुनिया में शांति स्थापित करने में अहम योगदान दिया है। इनकी कहानियां परिकथाओं जैसी लगती है, लेकिन इन्होंने अपने शौर्य का परचम भी ब्रह्माण्ड में लहराया है। ऐसी ही कुछ विदुषी और ज्ञानवान नारियों के हम बात करेंगे, जिन्होंने अपना नाम इतिहास में अमर कर दिया।

 

गार्गी

बृहदारण्यक उपनिषद में देवी गार्गी का वर्णन किया गया है। उनको वेदों का बहुत अच्छा ज्ञान था। गार्गी ने महर्षि याज्ञवल्क्य के साथ शास्त्रार्थ किया था और पौराणिक काल में उनका व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था। उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का सभा में जवाब देने वाले नहीं मिलता था।

मैत्रेयी

मैत्रेयी का भी वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है। मैत्रेयी और महर्षि याज्ञवल्क्य के बीच भी संवाद हुआ था। वे बहुत ज्ञानवान और दार्शनिक महिला थी। मैत्रेयी अद्वैत दर्शन में काफी दक्ष महिला थी। महर्षि याज्ञवल्क्य से उन्होंने आत्मन और ब्राह्मण के अंतर पर चर्चा की थी। मैत्रेयी ने तत्वमीमांसा का काफी अध्ययन किा था। इसलिए मैत्रेयी को धर्म और शिक्षा दोनों क्षेत्रों में काफी प्रसिद्धि प्राप्त थी।

लोपामुद्रा

लोपामुद्रा महर्षि अगस्त्य की पत्नी होने के साथ उस युग की एक महान दार्शनिक महिला थी। ऋग्वेद में लोपामुद्रा और महर्षि अगस्त्य के बीच हुए संवाद का वर्णन किया गया है। शास्त्रोक्त यज्ञ और पौराणिक ज्ञान में लोपामुद्रा का काफी नाम था। उन्होंने ललित सहस्त्रनाम का प्रचार-प्रसार किया था।

शचि

ऋग्वेद में शचि की शक्तियों के बारे में विस्तार से बतलाया गया है। शचि राजा पॉलोम की पुत्री और इंद्र की पत्नी थी उनको पॉलोमी और इंद्राणी भी कहा जाता था। शचि इंद्र के दरबार में उपस्थित 7 मन्त्रिकाओं में से एक थीं। शचि काफी बुद्धिमान और शक्ति संपन्न थी इसलिए उनको विशेषाधिकार प्राप्त थे और इंद्र के दरबार में उनका काफी सम्मान भी था। कुछ धर्मग्रथों में इंद्र को शचिपति कहकर संबोधित किया गया है, जिससे शचि के महत्व का पता चलता है।

घोषा

घोषा की विद्वता की कहानी ऋग्वेद में मिलती है। मन्त्रों में सिद्धहस्त होने साथ उनको आध्यात्म और दर्शन का भी ज्ञाता माना जाता था। घोषा को मधु विद्या जैसे वैदिक विज्ञान का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। घोषा ने यह विद्या अश्विनी पुत्रों से सीखी थी , जो उस समय के त्वचा के अच्छे जानकार थे।

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