आश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में छह माह का अंतर है। इसे सामंजस्य भी कह सकते हैं कि राम का जन्म या अवतार जिस दिन हुआ उसके छह माह बीतते ही बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया गया। अच्छाई का एक ऋतुचक्र वसंत, ग्रीष्म और वर्षा बीतते ही विजय उत्सव भी आ गया। यहां हम इस विजय के आधारभूत मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चिंतन कर रहे हैं।
उनका अवतरण भी वसंत के चरम पर मनाया गया। चैत्रमास के शुक्लपक्ष का आधा हिस्सा बीतते ही रामनवमी उत्सव शुरु होता है। इस उत्सव के बारे में तुलसी दास ने लिखा भी है- नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत न धामा, पावन काल लोक विश्रामा।। (बाल काण्ड90/1)
राम के स्वभाव और अवतरण का रूप बताते हुए वे लिखते हैं, भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।
जब प्रकट हुए भगवान राम
अर्थात् दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने आयुध धारण किए हुए थे, आभूषण, वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। भगवान ने मात्र प्रकट होकर उन्होंने लोगों को आनंद से भर दिया।
राम विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। उन्हें परात्पर ब्रह्म मानने वाले श्रद्धालु भी कम नहीं हैं। उन्हे ईश्वर का पर्याय माना जाता है। अपने देश की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के ऐसे उज्जवल तत्व हैं जिनके नाम के बिना सब अधूरा है।
राजा दशरथ की तीन पत्नियां क्यों
दशरथ हमारी दस इंद्रियों के रथ पर सवारी करने वाला राजा हैं, कौशल्या हैं सत और असत का विवेक कराने वाली वृत्ति। अनासक्त विदेही जनक की पुत्री सीता शक्ति स्वरूपा राम के साथ हों तभी धर्म का परिपालन हो सकता है। दशरथ की तीन पत्नियां तीन गुणों सत, रजो और तमोगुण की परिचायक हैं। जब तक मनुष्य तीनों गुणों में लिप्त रहेंगे तब तक राम रुपी आत्मा से दूरी रहेगी। तभी दशरथ राम से दूर हुए और शांति रूपिणी सीता जीवन से दूर हो गयी। राम का स्वरूप जो भी हों वह हमारे चित्त और चिंतन में सदा छाए रहेंगे।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।