दानवीर दैत्यराज बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा वाणासुर था। वाणासुर ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की। शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्त्र बाहु तथा अपार बल दे दिया। उसके सहस्त्र बाहु और अपार बल के भय से कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था। इसी कारण से वाणासुर अति अहंकारी …
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हनुमान से भेंट एवं राम-सुग्रीव मित्रता
पम्पा सरोवर पर पहुँचने के पश्चात् वहाँ के रमणीय दृश्यों को देख कर राम को फिर सीता का स्मरण हो आया और वे उसके वियोग में विलाप करते हुये लक्ष्मण से कहने लगे, “हे सौमित्र! पम्पा का जल मूँगे जैसा निर्मल है। इसके बीच बीच में खिले हुये कमल पुष्प और क्रीड़ा करते हुये जल पक्षी कितने मनोहारी प्रतीत होते …
Read More »कलियुग का आगमन और परीक्षित का अंत
पांडव अपने पौत्र महापराक्रमी परीक्षित को राज्य देकर महाप्रयाण हेतु उत्तराखंड की ओर चले गये और वहाँ जाकर पुण्यलोक को प्राप्त हुये। राजा परीक्षित धर्म के अनुसार तथा ब्राह्नणों की आज्ञानुसार शासन करने लगे। उत्तर नरेश की पुत्री इरावती के साथ उन्होंने अपना विवाह किया और उस उत्तम पत्नी से उनके चार पुत्र उत्पन्न हुये। आचार्य कृप को गुरु बना कर …
Read More »भगवान चित्रगुप्त एवं कायस्थ वंश
कायस्थों का स्त्रोत श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने चार वर्णो को बनाया (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र) तब यम जी ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी। फिर ब्रह्माजी ११००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो देखा कि “आजानुभुज करवाल पुस्तक कर …
Read More »आइये जानते है श्रीमद भगवद्गीता का महत्व
कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ। स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर …
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